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महिला सशक्तिकरण

हमारी कहानियाँ | घरेलू कामगारों की ज़ुबानीबिलासपुर

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राजकुमारी – उम्मीद के सहारे हर सुबह
उम्र: 42 वर्ष | स्थान: बिलासपुर
राजकुमारी पिछले 15 वर्षों से घरेलू कामगार के रूप में कार्यरत हैं। चार घरों में झाड़ू-पोंछा, बर्तन और सफाई का काम करती हैं। पीठ दर्द और लगातार थकावट के बावजूद, राजकुमारी रोज़ सुबह काम पर जाती हैं क्योंकि उनके पति की आमदनी बहुत अनियमित है।

    हर महीने करीब ₹10,000 कमाने के बावजूद ज़रूरतों के बोझ तले बचत मुश्किल है। उनका सपना है कि उनके बच्चों को कभी घरेलू काम न करना पड़े। वे चाहती हैं कि उनकी बेटी शिक्षिका बने।
    राजकुमारी कहती हैं,
    “शरीर थक जाता है, पर बच्चों की मुस्कान में मेरी ताकत है।”

    सुनीता कुमारी – हौसले की मिसाल
    उम्र: 35 वर्ष | परिवार: पति व तीन बच्चे
    सुनीता एक साहसी महिला हैं जो अकेले पांच घरों में काम कर तीन बच्चों का पालन-पोषण कर रही हैं। उनके पति बेरोज़गार हैं। वह अक्सर एनीमिया और घुटनों के दर्द से परेशान रहती हैं, फिर भी बच्चों की पढ़ाई के लिए हर महीने ₹2,000 बचाती हैं।

      सुनीता चाहती हैं कि सरकार उन्हें स्वास्थ्य सुविधा, बीमा और बच्चों के लिए स्कॉलरशिप जैसी सुविधाएं दे।
      “बीमारी आए तो भी काम करना पड़ता है, क्योंकि रसोई तब तक नहीं चलती जब तक हाथ चलें।”राधा बाई – संघर्ष से संबल तक
      उम्र: 50 वर्ष | स्थिति: विधवा
      राधा बाई पिछले 25 वर्षों से घरेलू काम में लगी हुई हैं। वह अब भी 3 घरों में काम करती हैं और अपनी बेटी व नाती की जिम्मेदारी उठाती हैं। वह डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों से जूझती हैं, लेकिन उनके अंदर आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता का जज़्बा है।

        ₹15,000 कमाकर वे ₹3,000 तक बचाने की कोशिश करती हैं और एक चिट फंड में पैसे जमा करती हैं ताकि भविष्य सुरक्षित हो।

        “अब तक औरों के घर साफ किए हैं, अब चाहती हूँ अपना एक छोटा सा साफ-सुथरा घर हो।”

        एक साझा सपना
        इन तीनों महिलाओं की कहानियाँ एक साझा संदेश देती हैं— सम्मान, सुरक्षा और स्थायित्व। ये महिलाएं सिर्फ घरों को नहीं, समाज को भी संवार रही हैं।

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