देवरी, छत्तीसगढ़:
30 वर्षीय सोनस्वरी साहू, पिछले 14 वर्षों से देवरी के एक शासकीय स्कूल में स्वच्छता कार्यकर्ता के रूप में कार्यरत हैं। शादी के बाद जब उनके पति को रायपुर काम के सिलसिले में जाना पड़ा, तब परिवार की जिम्मेदारी निभाने के लिए उन्होंने अपने पति की जगह स्वच्छता कार्य का दायित्व उठाया।
शुरुआत में परिवार और स्कूल प्रशासन से उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन सास के समर्थन और लॉटरी में नाम चयन होने के बाद, उन्होंने 2014 से इस पद को संभाल लिया। आज सोनस्वरी ना केवल स्कूल की साफ-सफाई करती हैं, बल्कि खेती में पति का सहयोग भी करती हैं और पूरे घर की जिम्मेदारी भी निभाती हैं।
उनका कार्यकाल सुबह 7:30 से 10:30 बजे तक होता है, और दोपहर भोजनावकाश के समय 1:30 से 2:30 बजे तक अतिरिक्त समय में भी वे सफाई करती हैं — जबकि यह उनके कार्यदायित्व में शामिल नहीं है। उन्हें प्रति माह मात्र ₹3,307 वेतन मिलता है।
पिछले वर्ष उन्होंने एक दिवसीय प्रशिक्षण में भाग लिया, जिसमें स्वच्छता के नियमों, मास्क और यूनिफॉर्म के उपयोग की जानकारी दी गई। यद्यपि उन्हें आवश्यक सामग्री प्रदान नहीं की गई, फिर भी वे पूरे नियमों का पालन करती हैं — जैसे हाथ धोना, टाइल्स की फिनाइल से सफाई, और कूड़ेदान का नियमित उपयोग।
सोनस्वरी को श्रमिक कार्ड, महतारी वंदना योजना, और सायकल योजना जैसे कुछ सरकारी लाभ मिले हैं, लेकिन अन्य योजनाओं की जानकारी के अभाव में वे कई सुविधाओं से वंचित हैं।
मुख्य चुनौतियाँ —
कम वेतन में बच्चों की पढ़ाई और घरेलू खर्च चलाना
मेटरनिटी लीव केवल 1 माह मिलना
यूनिफॉर्म, मास्क और ग्लव्स न मिलने से स्वास्थ्य जोखिम
“जहाँ सफाई है, वहीं से स्वास्थ्य और सम्मान की शुरुआत होती है। मैं इसी सोच के साथ रोज़ अपना काम करती हूँ।”
— सोनस्वरी साहू
मांग और सुझाव:
सोनस्वरी का मानना है कि अगर सभी स्वच्छता कर्मियों को मास्क, दस्ताने और यूनिफॉर्म प्रदान किए जाएँ, तो न केवल उनकी कार्य स्थितियाँ बेहतर होंगी बल्कि स्कूल का वातावरण भी अधिक स्वच्छ और सुरक्षित रहेगा।