कांकेर जिले के माकड़ी खूना गांव की निर्मला यादव की संघर्ष गाथा हर किसी के लिए प्रेरणा है। 2007 में शादी के बाद, उन्होंने कक्षा 5वीं तक ही पढ़ाई की थी। शादी के 6 साल बाद, 2014 में उनके पति को लकवा हो गया, उस समय उनकी बड़ी बेटी पांच साल और छोटा बेटा केवल तीन साल का था। इस मुश्किल घड़ी में, दो छोटे बच्चों की परवरिश और परिवार की जिम्मेदारी उठाना निर्मला के लिए चुनौतीपूर्ण था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
निर्मला यादव ने पढ़ाई को छोड़कर मेहनत-मजदूरी करके अपने परिवार की स्थिति में सुधार करना शुरू किया। 2021-22 में, एसबीआई ग्राम सेवा के कार्यक्रम के तहत, उनका श्रमिक विभाग में पंजीकरण किया गया। इसके साथ ही, उनके बच्चों के लिए नौनिहाल छात्रवृत्ति का आवेदन भी किया गया, जिससे उनके बच्चों की पढ़ाई का खर्च निकलने लगा और आर्थिक बोझ कुछ कम हुआ।
आज, निर्मला यादव किसी अच्छे नौकरी की तलाश में हैं, जो कुछ परिस्थितियों के कारण अभी संभव नहीं हो पाया है। लेकिन वे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं और मानती हैं कि बेटियों को अपना भविष्य चुनने का अधिकार होना चाहिए। उनका कहना है कि यह सब केवल शिक्षा के माध्यम से ही संभव है और संघर्ष करते रहना चाहिए।
निर्मला की कहानी में एक और महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उन्हें आंगनवाड़ी सहायिका से “महतारी वंदन योजना” के बारे में पता चला। अगले ही दिन वे ग्राम सेवा केंद्र पहुंचीं, योजना की जानकारी ली और आवेदन किया। अब उन्हें हर महीने 1000 रुपये की सहायता राशि मिलती है, जिससे उनके परिवार को आर्थिक मदद मिलती है। अब तक उन्हें 5000 रुपये प्राप्त हो चुके हैं, जिससे उनके परिवार की आर्थिक स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ है।
निर्मला यादव की यह कहानी उन लोगों के लिए प्रेरणा है जो मुश्किलों के सामने हार मान लेते हैं। उन्होंने न केवल अपने जीवन की चुनौतियों का सामना किया, बल्कि अपने बच्चों के भविष्य के लिए भी रास्ता बनाया। उनकी यह दृढ़ता और साहस सभी के लिए एक प्रेरणास्त्रोत है। निर्मला एसबीआई समर्थन संस्था का धन्यवाद करती हैं, जिन्होंने उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने में मदद की।